Thursday, April 19, 2007

कभी मैं सोचता हूँ , कि मैं इतना कन्फयूज़ क्यों हूँ।
पता लगा सायद सोचता हूँ इस लिए।
पर मैं सोचता क्यों हूँ?
सायद दिमाग हैं इस लिए,
पर क्या मेरे पास वाकई दिमाग है?
क्यूंकि अगर होता ,तो मैं सोचता नही।
क्यूंकि सोचने से दिमाग खराब हो जाता है
पर सोचने के लिए दिमाग चाहिऐ

और सोच ही दिमाग को खराब कर्ता है।
मतलब जिसकी उत्पत्ति जिससे है वो उसि को नस्ट कर रहा है।
अगर वाकई ऐसा है ,तो कन्फयूज़न तो होगी ना।

मेरे भ्रम का कारण मैं बाद मैं ढूँढ लूँगा।